गोली
अरे डरिये मत मै बन्दुक वाली गोली की बात नहीं कर रही हूँ ,मै तो खेलने वाली गोली की बात कर रही हूँ , इसकी बात मै इस लिय कर रही हूँ की क्योकि जब भी मै अपने घर से निकलती हूँ या मै कही से लौट कर घर आती तो बच्चे mere घर के द्वार पर मोहल्ले के बच्चे गोली खेलते मिलते थे , एक दिन मैंने उनसे पूछा की गोली कैसे खेली जाती है तो उस बच्चे ने बताया की गोली खेलने के कई तरीके है ,मैंने पूछा की गोली कितने की मिलाती है तो उसने बताया की एक रुपये की आठ गोली मिलाती है ,और ये काच की होती है और उसका आकर गोल होता है .कभी कभी ये बच्चे आपस में खेल खेल में लड़ाई भी करते है.इनके शोर से मै काफी परेसान हो जाती हु इन्हें मै जितना ही भागने की कोसिस करती हु वे उतना ही परेशां करते है .और तो और मेरा द्वार ही इनके खेल ka अड्डा बन गया है .जहा ये बिना किसी दिक्कत के आराम से खेलते है.
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